एक बादल
उड़ता हुआ
किसी परबत
पर जा रहा था
मैंने पूछा
ज़ल्दी में
लगते हो दोस्त !
उसने कहा
हाँ !!
मुझे दिन ढलने
से पहले उस
परबत पर जाना है।
वो कई दिनों से
मेरे इतंजार में है ।
आज मैं
उसे तल्सीन
करना चाहता हूँ
उसको भिगो देना
चाहता हूँ ।
मैं भी तुम्हारे
बरसने का
इंतजार कर
रहा हूँ ।
कभी तुम भी आओ
खुलके बरसो
चाँद !!!
इस सावन को
तल्सीन कर दो
1 comment:
waah bhai ji ..
ek sundar roop se apne dil ke bhaaw ko apne saamne rakha hai yahi to ek kavi ki pahchan hoti hai ke wo apne dil ke kone kone me jhaak sakta hai or wo hi aapne kiya hai ..
tabhi ek sundar rachna hamare saamne aa payi hai ...
apka
Deepak
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