Friday 28 November, 2008

आतंक की काली रात

(एक)
दहशत दर्द काली खौफ की रातों का मंज़र
अमन के सीने पे चला आंतक का खंजर
इन्तेहा
.. हद अब इन हादसों की
कि लहू लुहान हो गया समंदर
सारा शहर ही जैसे उसके कब्जे में था
वो
खेलते रहे मौत का नाच
मासूमों के खून से सुर्ख हो गई
काली
रात में काली सड़के
आतंक की काली रात

(दो)
आख़िर कब तक कब तक
हम इन जंगली भेड़ियों का शिकार
बनते रहेंगे
ये हमला हमारी अस्मिता पर हमला है
यही वक्त कि दरिंदो को मुहतोड़ जवाब दे




(
तीन)
आंतक का अंत अब करना ही होगा
हमें इन दरिंदो से अब लड़ना ही होगा
ये निर्णायक घड़ी है
ये लडाई बड़ी है


(चार)
सियासत तुझसे हमें
बासी
सांत्वना नही चाहिए
सियासत शहीदों और मासूमों
की चिताओं पर
तेरे आंसू भी नही चाहिए
आतंक से अब लडाई
होनी ही चाहिए
बहुत हो चुका अब तेरा सियासी तमाशा
सियासत तेरे सीने से भी अब आग निकलनी चाहिए




(
पाँच)
खुदा एक बात तुझसे भी कहनी है

जब बेगुनाहों का कत्ल बहता है
खुदा
उस रात क्या तू भी चैन से सोता है
क्यों
नही चाहता तू तेरी दुनिया में अमन रहे
अमन
के दुश्मनों की करतूत
तू क्यों रोकता नही
नेकी नीयत उनकी पाकीजा
तू
क्यों करता नही
ये मत सोचना इंसानियत
तुझ
से सवाल कभी करेगी नही ?
खुदा इन हादसों में कभी तुम
ख़ुद
को भी मरते देखो
तेरे
नाम पे जो खून बहाते हैं
अब उनको रोको !!!


(छः)
आंतक की काली ये रात
ये
हादसा
ये दर्द
खौफ का ये मंज़र
हम
अपने सीने में कहीं दफना दे
इस
खौफ के गुनहगारों को
बड़ी
से बड़ी सज़ा दे


(मुंबई में अब तक का सबसे बड़ा आंतकी हमला हुआ । इसमें अब तक १३० से ज्यादा लोगो के मारे जाने की ख़बर है । पिछले कई दशको से हमारा देश दहशतगर्दों का शिकार होता रहा है । ताज़ा फिदायीन हमला हमारी संप्रभुता पर खुली चुनौती है । सियासत अब तो नींद से जागे ...आख़िर कब तक बेगुनाहों का लहू यूँ ही बहता रहेगा । आख़िर कब तक ... आंतक को हम बर्दाश्त करते रहेंगे । ये वक्त लडाई का है । आतंक के अंत का है ....)
(सभी चित्र : बी बी सी डॉट कॉम )

Tuesday 25 November, 2008

इश्क दी बतियाँ


इश्क दी बतियाँ
इश्क दी रतियाँ
इश्क इश्क इश्क
रूह गाये रुबाइयाँ

यादों की करवट
इश्क की सिलवट
करवट करवट
खुदा की आहट
धड़कन धड़कन
खुदा की आहट
इश्क दी बतियाँ

इश्क हम सबका माजी
इश्क हम सबका मौला
दीन ईमान इश्क हमारा
सांसो का सबकी सहारा

इश्क ईमान जब हो जाए
इश्क खुदा हो जाए

इश्क दी बतियाँ
इश्क दी रतियाँ
इश्क इश्क इश्क
रूह गाये रुबाइयाँ

जिसने गहरा सागर उलीचा
मोतियन का पाया गलीचा
इश्क खुदा की नैमत ऎसी
इस ज़मी पे खुदा के जैसी

इश्क कभी छिपाए नही छिपता
इश्क की आतिश लगाये नही लगती

इश्क करना खुदा भी जानता है
इश्क से ही खुदा मानता है

Sunday 23 November, 2008

प्रार्थना

आज श्री सत्य साईं बाबा का जन्म दिन हैमानव सेवा ही माधव सेवा है का संदेश देने वाले श्री सत्य साईं बाबा ने केवल देश में बल्कि समूचे विश्व में "प्रेम ""सेवा" और सर्व धर्म समभाव का संदेश दिया है । किसी समय हमारे गाँव उमरानाला में श्री सत्य साईं सेवा समिति के माध्यम से प्रति गुरुवार भजन हुआ करते थेबचपन में इन भजनों में मैं अक्सर जाया करता था । श्री मन नारायण नारायण हरि हरि $$$ , गोविन्द बोलो हरि गोपाल बोलो $$$ ......... किसी समय उमरानाला की सुबह इस तरह के मधुर गीतों के साथ होती थी । सुबह सुबह सत्य साई सेवा समिति फेरी निकालती थी । क़रीब चार बजे सुबह बाज़ार चौक मन्दिर से प्रभात फेरी निकालती थी ....ढोलक मृदंग मंजीरे बांसुरी और हार्मोनियम के स्वर गाँव के माहौल को आध्यात्मिक कर देते थे । बाज़ार चौक ,बस स्टेंड ,रेलवे स्टेशन , एम् पी ई बी , नाका मोहल्ला बैल बाज़ार से होते हुई प्रभात फेरी लौटकर मन्दिर मे आ जाती थी फ़िर दैनिक आरती के बाद सत्य साईं सेवा समिति के लोग भक्त गण अपने अपने काम काज से लग जाते थे ।उस समय सुबह का यह संगीतमय आगाज़ मुझे बहुत अच्छा लगता था । इस तरह की जीवंत सुबह को मैं आज भी बहुत याद करता हूँ । श्री सत्य साईं बाबा कहते है“Once we surrender our mind to GOD completely, HE will take care of us in every way.” (श्री सत्य साईं बाबा ) आज श्री सत्य साईं बाबा के जन्म दिन के शुभ अवसर पर मुझे अपने गाँव की सुबह बहुत याद रही हैबाबा के जन्म दिन पर अहोभाव से अर्पित ....


प्रार्थना ह्रदय की पुकार है
प्रार्थना ईश्वर का द्वार है

सच्चे ह्रदय की पुकार है प्रार्थना
कल्याण की है ये कामना

ये सारी प्रकृति ही प्रार्थना में लीन है
परिंदों के गीतों में है प्रार्थना

हवा का बहना भी प्रार्थना
झरनों का गिरना भी प्रार्थना

फूलों का खिलना भी प्रार्थना
बादलों की रिमझिम प्रार्थना

सांसो का चलना भी प्रार्थना
तारों का आना भी प्रार्थना

सब प्रार्थना में लीन हों
प्रभु के प्रेम में तल्लीन हों

आओ हम प्रार्थना से भर जाए
प्रार्थना पूर्ण होके अर्थपूर्ण हो जायें
(हैप्पी बर्थ डे बाबा !!)

Wednesday 19 November, 2008

नई भोर

सुस्वागतम श्री श्री "गुरूजी"

"श्री श्री रविशंकर ब्रहम नाद व् प्राणायाम ध्यान शिविर के लिए कल २० नवम्बर से २१ नवम्बर के लिए नॉएडा (दिल्ली ) में रहे हैएक बुद्ध पुरूष की आमद का असर फिजाओं में भी हो जाता हैउसकी आमद का संदेश वादियों में बहने लगता हैप्रकृति जैसे गाने लगती हैसारा आलम ही जैसे महकने लगता हैगुरूजी का यह कार्यक्रम नॉएडा सेक्टर ३२ में हैइसमें एक हज़ार सितार वादक ब्रहम ध्वनी का नाद करेंगेअहा! मन अभी से सितार की तरह झंकृत हो रहा हैश्री श्री के शुभागमन का असर मैंने भोर में भी महसूस किया गुरूजी के श्री चरणों में अहोभाव से "नई भोर " अर्पित है ...."
जय गुरुदेव !!





ये नई भोर बहारों की है
उम्मीद
भरे नज़ारों की है

नई सोच को दिल में पाले हुए
दिलदार
समझदारों की है

एक
नई लहर को मैंने देखा आस्मां में अभी
फलक
पर मौज ये सितारों की है

नई दुनिया को बनाने निकले घर से
दुनिया
नयी ये नये विचारों की है

बदल दे अब हालात समंदर के हम
हौसलों
से भरी ये बात पतवारों की है

कोई ज़ज्बा मेरे ज़र्रे से निकला अभी
सूरज में अब रौशनी मेरे अंगारों की है

Monday 17 November, 2008

मेरा रुक जाना


किसी चीज़ का गुम हो जाना
जैसे दिल का ही खो जाना

रुक जाना वक्त का
सूरज का जैसे छिप जाना

ये तन्हाई का आलम और तेरे इश्क का तस्करा *
दिल बहलाने के लिए फ़िर यारों का मशवरा

यूँ तो यारो की सोहबत अच्छी लगती है
दौर ऐ मुहब्बत में ये चुभती है

किताबों में पढ़ ले कोई हर्फ़ हर्फ़
आरजू का कुछ ऐसे बयां हो जाना

सितारों के आगे जहाँ का चले जाना
ऎसी रफ्तार में तेरे वास्ते मेरा रुक जाना

न शर्म की न ही रखा हया ऐ ख्याल
किसी बात पर चेहरे से उसके रंग उड़ जाना

जो सीख ले तुझ से दिल लगाना
उसका तेरी गलियों से फ़िर कहीं न जाना

*तस्करा :चर्चा

Friday 14 November, 2008

बच्चे बन जाए


खुदा भी खुश हो जाएगा
वो भी बच्चा बन जाएगा
सारा आलम गुनगुनाएगा
चलो फ़िर से बच्चे बन जाए
चलो फ़िर सच्चे हो जाए

बचपन की गलियों में घूमें
दादी नानी की कहानियो में झूमे
माँ की लोरी पापा की सीख
बचपन ही हम सबका मीत

भैया की डांट भी इसमें
बहना का प्यार भी इसमें
बचपन तो गीतों जैसा
दादा दादी नाना नानी
मामा मामी चाचा चाची
के दुलार जैसा ।

न रुपया न पैसा है
फ़िर भी बचपन अनमोल खजाना
जब भी दिल हो जाए भारी
बचपन की गलियों में आजाना

गुनगुनाना मुस्कुराना
बच्चा बन के खुशिया लुटाना

पानी के तालाब में तैरें
परियों के देश में टहले
घूम ले दुनिया दो पल में
जन्नत का नज़ारा कर आयें
चलो फ़िर से बच्चे बन जायें
चलो फ़िर सच्चे हो जाए ।

खिलखिला ले मुस्कुरा लें
बचपन के ये पल फ़िर से बिता ले
ताजी ताजी यादों को जी ले
बचपन की मीठी बेर चख ले

कोई खिलौना जो हो सलोना
फ़िर से बाज़ार से ले ले
आओ रेत से कुछ घर बना ले
रेत के पुल पर गाड़ी चला ले

खेल तमाशे कुछ कर ले
बचपन को मिलके जी लें


चलो बाग़ में तितली पकड़े
चलो कागज़ की कश्ती खेले
चलो हवा ही बन जाए
हवाओं के महल बनायें

बचपन तो एक जश्न है
इसे कभी भी मनाते जायें
कोई सबब न ढूंढे हम
बस बच्चे हो जाए

आओ खुदा को चलो
बनके बच्चा हम मनाये
(आप सभी को बाल दिवस की शुभकामनायें ..)

Saturday 8 November, 2008

सांस सांस जीवन


सांस सांस जीवन है
उलझी सांसो को सुलझा लो
अपनी सांसो को साध के
जीवन को महका लो

सांस सांस महकेगा जीवन
जीवन बन जाएगा वंदन
जीवन का प्राण है सांसे
सांसो को हम थामे

सांस सांस सितार बजा ले
सांस सांस बजा ले मुरली
सांसो से सुमिरन कर ले
सासों से मना ले भगवन

सांसो को चलो हम साधे
जीवन को सहज बना ले
सांस है सहज सरल
जीवन को कर ले निर्मल

सांसो के इस आराधन में
जीवन को कीर्तन कर ले
सांसो के लिए चलो हम
ख़ुद का समपर्ण कर ले

सांस सांस सुदर्शन हो जाएँ
बनके मीरा मोहन हो जाएँ
एक लय दे दे जीवन को
जीवन को सुरीला कर ले

(आर्ट ऑफ़ लिविंग में श्री श्री रविशंकर "महाराज जी " सांसो को साधने की बात कहते हैहम सबके जीवन का आधार सांसे ही हैंऔर हम सभी सांसो की ही उपेक्षा करते हैं । सुदर्शन क्रिया सांसो में ताजगी भरने का काम करती हैजीवन को सहज और सरल कर देती हैसांसो को साध कर हम जीवन को साध सकते हैजीवन को गुलशन कर सकते हैंयही सुदर्शन है ..यही जीवन है )

Wednesday 5 November, 2008

सारा जहाँ सिमट गया

आज फिर ये एहसास हुआ
खुदा जैसे तुमने मुझे छुआ
तुम्हारी छुअन से
जो जुम्बिश हुई
ये जुम्बिश अभी तक कायम है
ऐसा लगा मझको
हम दो नही एक है
खुदा वो जो तुम सिमट गए थे
मेरी बाँहों में आके
खुदा मुझे ऐसा लगा
सारा जहाँ मुझमे सिमट गया
खुदा तुम्हारी करवट मुझे
मोम की मानिंद लगी
ऐसा कभी कभी ही क्यूँ होता है ?
खुदा ये रोज़ क्यों नही होता
खुदा तुम कुछ तरकीब लड़ाओ
मेरी बाँहों में
हमेशा के लिए आ जाओ.

Monday 3 November, 2008

घुम्मी कर ले

आओ बच्चो कर ले घुम्मी
चाँद के गाल पे देदें चुम्मी
संग चले अपने
दादा -दादी,पापा-मम्मी

सर्दी लगे चाँद को तो
हम देंगे कम्बल
जो मांगे घर
ताज महल हम देदेंगे

गुदुगुदी सी रुई ला दो
चाँद का लिहाफ बना दो
बोलो तो नाना गायेंगे
इक गाना
या बोलो तो नानी
करने देगी मनमानी

बच्चो अपनी मर्जी है
आज मन मौजी है
तारों पे क़दमों को रख दे
आज फलक को गुलशन कर दे

या हस दे से ज़ोर से
हसी से कर दे हल्ला गुल्ला
चाँद के गाल पर भर दे
थोड़ा सा रसगुल्ला
l