Thursday 30 October, 2008

सूरज लाया हूँ


इन अंधेरों को अलविदा कह दे
तुझे देने सूरज लाया हूँ


खत्म होता होगा अर्श भी कहीं
फर्श को अर्श का मकां देने आया हूँ


जलवों के जलसे लिए
रोशनाई की कतार लाया हूँ

बेफिक्र हो जा आज कि मैं
सीधे खुदा से मिलके आया हूँ


(आप सभी सुधि पाठकों को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें
दीपो का यह पर्व आपके जीवन में सुख समृद्धि शान्ति और उल्लास
का प्रकाश लाये .....
शुभकामनायें
आपका ही
अमिताभ )

Wednesday 22 October, 2008

परिंदे


सुबह के गवैये परिंदे
बिन साजों के ये साजिन्दे
इनकी सरगम सुबह सवारे
सुन परिंदे क्या गाते है
कहीं दूर बैठे अपने आशिक को
क्या ये बुलाते हैं ?

आसमान दिया खुदा ने परिंदों
को उड़ने के वास्ते
ये उडे आसमान में हम देखे इनके नज़ारे
परिंदे कतार में उड़के जाने कहाँ जाते हैं
अपने घोसलों से दूर कहाँ ये उड़ने जाते हैं ?

परवाज़ हौसला देती है
परवाज़ देती ये फलसफा
कोई भी मुश्किल आए मत छोड़ना
अपने पंख पसारना
मत छोड़ना उड़ना

सैय्याद सोचता है परिंदों को क़ैद कर
वो उनका हौसला तोड़ सकता है
पिजर में भी आके परवाज़ आसमान देखना
नही छोड़ता है

Monday 20 October, 2008

एक थाल मोती से भरा है


एक थाल मोती से भरा है
सबके सर पर औंधा धरा है
प्रीत की अनोखी रीत
जो हारे इसमे उसकी होती जीत

प्रीत करो पिया से ऐसे
दुनिया में बस पिया हो जैसे
आज रंग भरो प्रेम का
पिया के नाम से मांग सजा लो
विरह मिलन जो भी मिले
पिया के नाम से उसे अपना लो

आज रंग खिला है चाँद का
पी का नूर चाँद पर आया
प्रीत का रंग जो चढ़ जाए
दूजा रंग न चढ़ने पाए

कोई पहेली कहो खुसरो
कोई रुबाई कहो खुसरो
आज महफिल फ़िर सजा लो
मुझे भी सुखनवर बना दो
(आज ख्वाजा अमीर खुसरो सहाब का उर्स है । तूती हिंद ख्वाजा की पवित्र दरगाह पर श्रद्धा और अहोभाव के साथ अर्पित )

Tuesday 14 October, 2008

धुआं उड़ने दो


दिल से मिलकर आया
दिल में घर करके आया
रूह से धुलकर आया
रंग हवा हो जाने दो
धुआं धुआं धुआं
धुआं उड़ने दो

लबो को इसने चूमा है
बादलों के बीच ये घूमा है
तस्सली इतनी की तस्लीम
चाँद की करता
धुएँ का छल्ला
नखरैल बिल्लो को
भाता नही धुएँ का छल्ला
नाक पर धर लेती है
अपना पल्ला

काश ! कि धुआं इतनी दूर तक जाए
कभी खुदा से मिलकर आए

थोड़ा ज़र्दा थोड़ा परदा
धुआं उड़ा चला बनके
चांदी का छल्ला

इस धुएँ को उड़ने दो
कश से कशमकश ज़िन्दगी की
मिटने दो
दुआ दुआ
धुआं धुआं उड़ने दो
(***वैधानिक चेतावनी: सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है )

Saturday 11 October, 2008

ख्वाबों में चाँद


मेरे खवाबों में चाँद
मेरे ख्यालों में चाँद
मेरे दिल में चाँद
मेरे दिल का चाँद

झरोखे खोल के झांके
कभी छत से ताँके
चाँद मेरे साथ रहता है
चाँद मेरी सांसो में बहता है

उस जैसा कोई भी तो नही
फलक पर ही नही पलक पर
भी चाँद रहता है ।

चाँद तुझको हमने हमेशा
सर माथे पर बैठाया
सुखनवर बने सुखनवर
चाँद तुझको ही देख के ।

चाँद कोई महबूब है
जिससे दिल लगाया
हर किसी ने
चाँद से दिल्लगी के हश्र की
परवाह किसे ?
बहुतो के ख्वाबों में पले चाँद !!

चाँद हम तेरे पास आ रहे हैं !

Tuesday 7 October, 2008

चाँद हम आ रहे हैं


चाँद तक पहुंच रहा अरमान
चाँद पर जा रहा चंद्रयान
चाँद पर जा रहा हिंदुस्तान

चाँद तुझे नज़दीक से देखना है
चाँद फुर्सत में एक रोज़ तेरे
संग बैठना है

कभी मामू कभी महबूब
चाँद कितनी शक्लों में नज़र
आता रहा
दूर से ही चाँद हमें भरमाता रहा

कभी माँ ने थाली में परोसा चाँद
कभी पढ़ा किताबों में
चाँद
पड़ोसी है ।

ज़मी के इर्द गिर्द घूमता
फिरता
ज़मी के साथ साथ चाँद चलता

कभी बढे कभी घटे
चाँद के नूर और जलवे
कुछ यूँ दिखे

तन्हाई में दोस्त हमदम चाँद
सितारों के झीनी चादर को
ओढे चाँद ।

चाँद एक पतंग है
जिसकी गिरफ्त में दिल बंद है
फलक का नूर चाँद
अब दूर नही चाँद

अदब है लिहाज है
चाँद ग़ज़ल ओ शायरी का
हमराज़ है .

चंद्रयान जाके चाँद से कहियो
हम सबका पैगाम
चाँद को दियो हम सबका
सलाम ।

चाँद हम आ रहे है
चाँद हिंदुस्तान का अरमान
आ रहा है ।

( अक्तूबर अनिमेष दा के जन्म दिन पर उन्हें ढेर सारी बधाई शुभकामनायें )

Sunday 5 October, 2008

मुझे अब भी याद है


मुझे अब भी याद हैं
आज भी याद है
मासूम से रिश्ते के
वो सिलसिले
चाँद में नहाये हुए
चांदनी में धुले हुए

भूलने की तुम्हे कोई वजह
आज तक समझ आती नही ।
बचपन की वफ़ा का असर
अब तक है कैसे ?

मुझे अब भी यकी नही
कि एक अरसे से हम दोनों
के दरमियाँ कोई बातचीत भी नही

गाँव की गलियां उनमे
तुम्हारे घर का झरोखा
उस झरोखे से तुम्हरा
झांकता चेहरा ...

अब भी दिख जाता है
कभी ख्वाब में कभी
हकीकत में

तुमको ख्वाब समझ कर
भूल जाने की कोशिश भी की
ख्वाब होती तो
शायद याद भी न रहती

कुछ किताबों के पन्नो सी
यादे
यादों की अच्छी
सौगातें !!

चाँद को देखने से तुम
याद आ जाते हो
ब्लैक बोर्ड पर लिखी
होती गर ये मासूम
मुहब्बत
मैं मिटा तो देता
मगर फिर भी ये
कर पाना मुश्किल ही होता ।

मेरी तुम्हारी यादों के पल
गुल्लक में भरे हैं
खनकते
आ ही जाते हैं।

आज चाँद से पूछ कर
देखूंगा
कितना करती हो
तुम मुझको याद