चलो उंगली पे अपनी
आस्माँ उठाये
थोड़े से फूल चांद पे भी उगाये
सितारों को टोकरी मे भरके
जमी पे ले आयें
कभी जमी को ऊपर तो
कभी आस्माँ को नीचे ले आए
खुशियाँ मनाएं /सब गुनगुनायें
कितने दिनों से सूरज नहाया नही है
थोड़ा सा साबुन इसको भी लगाये
पानी का फौव्वारा इस पे भी चलाये
कभी जमी को ऊपर तो
कभी आस्माँ को नीचे ले आए
खुशियाँ मनाएं /सब गुनगुनायें ।
बादल के गाँव मे चलकर
थोडी नाव चलाये
पानी भरा है उसके पेट मे
थोडी गुदगुदी भी लगाये
उसको गुदगुदी करने से थोड़ा
पानी बरसेगा
पानी पी पी के मोटा हुआ उसका पेट
ज़रा सा पिचकेगा ।
कभी जमी को ऊपर तो
कभी आस्माँ को नीचे ले आए
खुशियाँ मनाएं /सब गुनगुनायें
रुई कात रही है कब से
चांद पे बैठी अम्मा
उसके सफ़ेद बालों मे
चलो थोड़ा सा खिजाब लगाये
कभी जमी को ऊपर तो
कभी आस्माँ को नीचे ले आए
खुशियाँ मनाएं /सब गुनगुनायें
चाँद पे बैठी अम्मा की
चरखी मे थोड़े से रंग लगाये
ताकि दिन मे उसकी रुई के
बादल रंग बिरंगे हो जायें
रंगो की पोटली उसको देके आए
रोज़ देखे रंगीन आसमान
कभी जमी को ऊपर तो
कभी आस्माँ को नीचे ले आए
खुशियाँ मनाएं /सब गुनगुनायें ।
17 comments:
अमिताभ जी
सोचता हूँ अगर आप बिना प्रयोजन ही इतना अच्छा लिखते हें तो प्रयोजन होने पर कितना अच्छा लिख देंगे. बहुत अलग और मज़ेदार अंदाज़ में लिखी है आप ने कविता. लिखते रहें.
नीरज
वाह !! बहुत उम्दा भाव हैं, कल्पनाशीलता की दाद देता हूँ:
रुई कात रही है कब से
चांद पे बैठी अम्मा
उसके सफ़ेद बालों मे
चलो थोड़ा सा खिजाब लगाये
...बहुत खूब!!
--शुभकामनाऐं.
चलो उंगली पे अपनी
आस्माँ उठाये
थोड़े से फूल चांद पे भी उगाये
सितारों को टोकरी मे भरके
जमी पे ले आयें
adhbhut...bahut sundr.....lajavab...
agar yuva pahachaan bana le to aapki yah kavita saarthk sidh ho jaaye jo anaayas hi nikal padti hai dost....
अमिताभ जी सादर प्रणाम,
आप की कविताओं मे जो नया पन होता है उससे दिल मे कुछ नया करने की इच्छा होती है.... बहुत अच्छा लिखते हैं आगे भी ऐसा ही लिखते रहिये॥ शुभ कामनाएं ...कलीम शिबली
चाँद पे बैठी अम्मा की
चरखी मे थोड़े से रंग लगाये
ताकि दिन मे उसकी रुई के
बादल रंग बिरंगे हो जायें
रंगो की पोटली उसको देके आए
रोज़ देखे रंगीन आसमान
ऊँचे आकाश को रंगीन बनाने का ख्याल बेहद अच्छा है ...बहुत सुन्दर !!
bahut hi khubsurat aur saadgi se bhari rachna hai,
jaise koi bachcha cand ki maa ko dekhe,
bahut achhi.......
अमितभ जी, बहुत खुब , ओर सुन्दर हे आप की कविता पहली बार आया हु, एक लाइण हमारी भी जोड ले..
रुई कात रही है कब से
चांद पे बैठी अम्मा
चलो आज उस का
हम सब हाथ बाटंये
कविता क्या है,जिंदगी की गुनगुनहट ही है
यह प्रियवर अमिताभ.
बधाई.
कितने दिनों से सूरज नहाया नही है
पानी का फौव्वारा इस पे भी चलाये
बादल के गाँव मे चलकर
पानी भरा है उसके पेट मे
थोडी गुदगुदी भी कर आये
उसको गुदगुदी करने से थोड़ा
पानी बरसेगा
पानी पी पी के मोटा हुआ उसका पेट
ज़रा सा पिचकेगा ।
इन शब्दों मैं कही सभी बातो के मुझे कई कई अर्थ नज़र आ रहे है विस्तार से टिप्पणी देना यहाँ संभव नहीं है लकिन एक बात है की आपकी रचना के दोनों अंश सार्थक है एक तरफ किसान की दुखभरी कहानी तो एक चाँद पर बेठी दादी माँ की कहानी और भी बहुत कुछ ................
bahut hi achha..
khayal ati sundar.
kya khoob kaha hai dada nice wah wah mast...
बादल के गाँव मे चलकर
थोडी नाव चलाये
पानी भरा है उसके पेट मे
थोडी गुदगुदी भी लगाये
उसको गुदगुदी करने से थोड़ा
पानी बरसेगा
पानी पी पी के मोटा हुआ उसका पेट
ज़रा सा पिचकेगा ।
bahut hi umda.....tasavvur ki intiha hai.likhte rahiye.
This guy really writes very well.
He is very rich by subject & words. You r doing good job work dear. lage rahoo.....
regards,
naresh kaushik
bahut hi umdaa rachnaa hai Bhai G. Behatar...Super Super Super...आस्माँ उठाये...sachmuch ye rachnaa aasmaa hi ban padi hai...shukriya.
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मैं देख कर खुश हो जाता
उड़ने लगती दिलो दिमाग मे मेरे
मीतू की चिडिया .......
अच्छी कल्पना है
कितने दिनों से सूरज नहाया नही है
थोड़ा सा साबुन इसको भी लगाये
पानी का फौव्वारा इस पे भी चलाये
कभी जमी को ऊपर तो
कभी आस्माँ को नीचे ले आए
खुशियाँ मनाएं /सब गुनगुनायें
"behtreen"
REgards
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