Thursday, 22 May 2008

मीतू की चिडिया

बचपन की अलसाई भोर में
जल्दी जाग जाना ,
घर की खिड़की से
जागते सूरज को देखना
लाल लाल गोल मटोल
सूरज का कभी दरख्त के
पीछे से आना ,कभी
उसका पहाडों के पीछे से आना

घर में चिडियों की आमद
लगती थी जैसे हों सब की सब
सूरज की संगी साथी
सुबह के आते सब काम से जुट जाते ,
मैं भी जुट जाता
पापा के साथ ,अपनी स्लेट कलम को थामे
पापा की ऊंगली को थामें
अनार के '' और आम के ''
पर देर तक उंगली चलाना
को देख को देख
मुस्कुराते जाना
हाथों का कलम घिसते रहने से
सफ़ेद सफ़ेद हो जाना
फ़िर पापा की नज़रों से बचकर
कलम को कच्चा चबा जाना

जब ऊबने लगता मैं
अनार के और आम के से
पापा स्लेट को लेकर
बनाने लगते मीतू की चिडिया
मैं देख कर खुश हो जाता
उड़ने लगती दिलो दिमाग मे मेरे
मीतू की चिडिया .......
स्लेट में बनी चिडिया को
बार बार देखता
उड़ने लगती मेरे अरमानों से
सजी धजी मीतू की चिडिया

मेरे बड़े होने पर ...
फ़िर आई कुछ और बच्चों की बारी
ये बच्चे आस पड़ोस के
पापा बनाते उनकी स्लेटों पे
भी चिडिया ......
कभी श्रेणू की कभी हर्षू की
कभी ,गोल की चिडिया
कभी पिंकू की, कभी चिन्नी की
चिडिया

पापा अब बनाते हैं तनु की चिडिया
आसमान मे उड़ रही मेरे बचपन से
अब तक जाने कितनी चिडिया.....
चिडिया मुझे लगती अपनी
आसमान में संग संग उड़ती चिडिया।

मीतू की चिडिया,
तनु
की चिड़िया
श्रेणू -हर्षू -गोल,
पिंकू-
चिन्नी की चिडिया
सजी धजी रंगो से भरी चिडिया।

परियों जैसी चिडिया
ख्वाबों ख्यालों जैसी चिडिया
पतंग जैसी चिडिया
उमंगों के जैसी चिडिया
नदियों जैसी चिडिया
मीठे सपनों के जैसी चिडिया

मीतू की चिडिया,
तनु की चिडिया,
श्रेणू- हर्षू -गोल,
पिंकू चिन्नी की चिडिया
हम सब की चिड़िया
हमारी उम्मीदों की चिड़िया
हमारे अरमानों की चिड़िया !!

7 comments:

Dr. Chandra Kumar Jain said...

हम सब की चिड़िया
हमारी उम्मीदों की चिड़िया
हमारे अरमानों की चिड़िया
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अमिताभ !
कुछ ऐसे ही लगी यह कविता.
कितनी मनमोहक होते हैं ये यादें,
अपनी ही याद दिलाती यादें !
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बधाई
डा.चंद्रकुमार जैन

Dr. Chandra Kumar Jain said...

संशोधित कर पढ़िए...टाइपिंग की त्रुटि.
होते हैं....की जगह पर ....होती हैं.

शुभकामनाएँ
डा.चंद्रकुमार जैन

डॉ .अनुराग said...

vakai umda kavita hai,bhanayo ke kai mishran liye hue....

Udan Tashtari said...

हम सब की चिड़िया
हमारी उम्मीदों की चिड़िया
हमारे अरमानों की चिड़िया !!


-वाह! बहुत बेहतरीन लगी कविता. बधाई.

karmowala said...

ये तो अपनी कहानी नज़र आती है लेकीन सलेटी कही खो गई अब तो पेंसिल से कागजो को कला करना पड़ता है और मेरा बेटा कहता है की पापा मैं तो थक गया और मैं उसे कह देता हू की अब तुम थोडी देर खेलो फ्हिर पड़ना कभी कुछ रंग करना तो कभी चिडिया तो कभी मछली बनाना

Amit K Sagar said...

bahut sundar kavitaa...jaise meetu kee chidiyaa...nice
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Amit K Sagar said...

बहुत ही सुन्दर कविता...बचपन इक़ चिडिया ही है...जो उड़ना चाहता है खुले गगन में...और आज बचपन भी जिस तरह से प्रासंगिक हुआ है मत पूछो...किस ओर बयार लेके जायेगी बचपन कि इस चिडिया को...आपने इक़ सही सिम्त का प्रशंसनीय प्रयास किया है...बहुत ही खूबसूरत लहजे में...शुर्किया.
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ultateer.blogspot.com