Tuesday, 17 June 2008

मीतू की छतरी



बारिश की आमद के पहले
मम्मी लेकर आई छतरी
सुंदर सी प्यारी सी
छोटी सी छतरी ।

सप्त रंगो से सजी थी छतरी
इन्द्रधनुष बने थे उसमे
गोल गोल सी घेरो वाली
सुंदर सी प्यारी सी
छोटी सी छतरी .

रेशमी धागों को लेकर
मम्मी ने छतरी पर
कुछ फूल बनाये
बेल बनाई
और लिख दिया रेशमी
सुनहरे धागों से उस पर
मीतू की छतरी ।

स्कूल में छतरी
गुम न जाए
खो न जाए
इसलिए भी लिखा
मम्मी ने रेशमी
धागों से
मीतू की छतरी ।

छतरी पर बने फूल थे प्यारे
बेल थी प्यारी
मैं छतरी को पाकर
बारिश की आमद का
करने लगा इंतज़ार
कब आयेगी बारिश झम से
कब बरसेगा बादल झम से
रिमझिम फुहारों का
बारिश के त्यौहारों का
मैं करने लगा बेसब्री से
इंतजार ।

छतरी को मैं पास में रखता
संग खेलता और हसता
घर में उसको खोल के देखता
शीशे के सामने देखता
कैसा लगता हूँ छतरी के साथ

घर से मैं बाहर जब जाता
तब भी दिमाग में घूमती
रहती छतरी
मैं दौड़ कर भाग के आता
घर में छतरी को देख के जाता।

कभी कभी घर में
छतरी के अन्दर मैं
रख देता खेल खिलौने
छतरी अब बन गई
मेरी नन्ही सी साथी ।
गोल गोल उसको घुमाता
उसके संग गोल सा हो जाता

फिर बारिश की बूंदे आई
मैं निकला लेकर छतरी
बारिश की बूंदों से
गाने लगी मीतू की छतरी

छतरी के गाने को सुनकर
मन करता सुनता ही जाऊँ
नही खत्म हो बारिश कभी भी
मैं छतरी के संग उड़ता ही जाऊँ


बारिश की रिमझिम
बूंदे भरने लगी छतरी में रंग
जब हवा तेज़ होने लगती
उड़ने लगती मेरे हाथ से छतरी

मम्मी ने समझाया मुझको
जब हवा बहे बहुत ज्यादा
हवा के उस ओर खड़े होने से
नही उड़ेगी छतरी ।

मेरा मन करता
मैं और छतरी उड़ जाए
ऊँचे ऊँचे आसमान मे जाकर
बादलों से मिलकर आए
ख्वाबों में उड़ती छतरी
बादलों से मिलती छतरी
सुंदर सी प्यारी सी
छोटी सी छतरी
मीतू की छतरी .

8 comments:

Dr. Chandra Kumar Jain said...

ख्वाबों में उड़ती छतरी
बादलों से मिलती छतरी
सुंदर सी प्यारी सी
छोटी सी छतरी
मीतू की छतरी
======================
बधाई....बहुत कोमल मन से
लिखी गयी कविता.
==============
डा.चंद्रकुमार जैन

pallavi trivedi said...

बादलों से मिलती छतरी
सुंदर सी प्यारी सी
छोटी सी छतरी
मीतू की छतरी .

bahut pyari masoom si kavita...

सुप्रिया said...

सप्त रंगो से सजी थी छतरी
इन्द्रधनुष बने थे उसमे
गोल गोल सी घेरो वाली
सुंदर सी प्यारी सी
छोटी सी छतरी .

सरल और सहज रचना ,
बेहद मासूम ..अति सुंदर !!अमिताभ जी, आपकी इस रचना में बचपन का एक और रंग दिखा है .शानदार !!

Amit K Sagar said...

बहुत ही खुबसूरत रचना. बचपन याद दिलाने के लिए आभार. सचमुच बचपन में मैं और मेरी छतरी याद आगईई...और यूँ भी इन दिनों बारिश का ही मौसम है...तब तो ये और भी खास बन पड़ती है...
आभार.
---
उल्टा तीर

श्रद्धा जैन said...

wah kya baat hai chhatri ki baaten aur maa ka pyaar
itni massom kavita kam hi dekhne ko milti hai

karmowala said...

अमिताभ जी बरसात के मौसम मैं छतरी का जिक्र न हो तो शायद बरसात फीकी ही रह जाए और एक बहुत बड़ा बदलाव जो आप के साथ मैं छतरी के विषय मैं बताना चाहुगा वो ये की छतरी का साइज़ अब बहुत छोटा होता जा रहा है क्युकि लोग अब छतरी के निचे अकेले रह गए है पहले छतरी के नीचे कमला ,बिमला या फिर कोई राधा होती थी अब छतरी दो लोगो के साथ साथ चलने के लिए शायद ही इस्तेमाल की जाती हो लेकिन सचमुच यदि एक छतरी और लोग हो दो तो सावन मैं लग जाती आग ?
इसलिए मैं तो हर बरसात मैं इतनी बड़ी छतरी लेकर ही चलूगा की कोई राधा मेरे साथ बरसात का आनंद ले सके

seema gupta said...

बारिश की रिमझिम
बूंदे भरने लगी छतरी में रंग
जब हवा तेज़ होने लगती
उड़ने लगती मेरे हाथ से छतरी

" bhut sunder"

regards

Arvind Mishra said...

बहुत सुंदर है मीतू की छतरी ! वाह !वाह !!