Wednesday 2 July, 2008

स्कूल की याद


आज पहली जुलाई है
याद आई
बरबस ही स्कूल की याद
नए नए बस्ते में
नयी किताबों की खुशबू
नए रंग भरती
स्कूल की याद

बारिश से गीली मिटटी है
पैरों में लगता कीचड है
मिटटी की सौंधी खुशबू
लेके आई स्कूल की याद

पहले दिन स्कूल में
पढ़ाई नही होती
पहले दिन स्कूल में
लडाई नही होती

मिलते जुलते है
एक दूजे से सब
मिलजुलकर होती
स्कूल की सफाई

पहले दिन स्कूल में
ये भी नही पता होता
कौन कौन से टीचर
पढायेंगे पूरा साल

छुट्टीयों के बाद
स्कूल को देखना
लगता ऐसा
जैसे किसी बिछुडे
दोस्त को देखना

पहली जुलाई को स्कूल
में होती गर्मियों की
छुट्टी की बात

कोई अपने नाना -नानी से मिलके आया
कोई दादा- दादी के गाँव से घूम के आया
सबके पास होती है
छुट्टियों की बातें
ढेर सी बातें
बातों की सौगातें

पूरी छुट्टियों मौज मनाई
एक बूँद भी नही की पढाई

पढने में यूँ तो आई
कई कहानी
पूरे साल एक एक करके
जो है सुनानी

शहजादी की शादी है
राक्षस की डरावनी बाते है
शहजादों के महल भी इनमे
नेकी की सीख भी इनमें

छुट्टी में सीखा है
जाने कितना काम -धाम
कुछ चित्र बनाये है विचित्र से
वो भी तो स्कूल में है लाना
जिन शहरों में हम घूमें है
वो भी तो है बतलाना

उफ़ न जाने कितनी बाते है
सबके सब ध्यान में लाते

किताबों पर नया
कवर चढा है
गणित की किताब
देखने का मन नही करता
अच्छी लगती है
बाक़ी सारी किताब

जून की आखरी हफ्ता
इस इंतजार में गुजरता
कब खुलेगा स्कूल का
ताला ।

पहली जुलाई को ताला
खुल जाता है
साल भर के लिए
पढ़ाई का काम मिल जाता है

नए नए से कपडे मिलते
स्कूल की दीवारे भी
नई नई सी लगती है
अपनापन लगता है इनसे
इनसे बात भी होती है

हर कोने कुछ कहते है
साल भर इनके संग जो रहते है

स्कूल के मैदान में
हलचल होती है
स्कूल की घंटी कब
बजेगी बाते होती हैं

स्कूल की घंटी बजते ही
सब लग जाते
लाइन में
इस कक्षा से
उस कक्षा में
जाना
इस लाइन से
उस लाइन में
खडे हो जाना
अच्छा लगता है

कुछ दोस्त
वहीं रह जाते है
पुरानी कतार में
सब के साथ
स्कूल की प्रार्थना गाना

फिर अपनी नई कक्षा में
घुस जाना
मास्टरजी की
बैंत रखी है
डस्टर चाक़
किताब रजिस्टर
रखा है

ब्लैक बोर्ड
खुशी से चमक रहा है
काफी दिनों से
वो भी खाली
पड़ा था

मानो सबको
को था जैसे
एक दूसरे
का इंतज़ार

एक जुलाई क्या आई
हो गया शुरू
स्कूल का त्यौहार ।
मन को खुशी
देता स्कूल का त्यौहार

7 comments:

समयचक्र said...

bahut badhiya 1 july ki sougaat achchi rahi .

E-Guru Maya said...

अच्छा याद दिलाया. धन्यवाद. :)

Arvind Mishra said...

नए तेवर की खूबसूरत कविता !

karmowala said...

अमिताभ जी बचपन पर जितना सटीक और सुन्दर चित्रण आप कर रहे है उसे लगता है की आपको बच्चो पर जरूर कोई पुस्तक लिखनी चाहिए
एक बार फिर आप ने विद्यालय ,बरसात और छुटियो का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है मुझे भी याद है छुटियो के बाद एक दिन हम विद्यालय नहीं जाते थे क्योकि विद्यालय मे पहले दिन सफाई करनी पड़ती थी अभी एक बच्चे के मुख से ऐसे शब्द फिर सुनाई दिए तो वो दिन जीवित हो उठे क्या इतने बरसो के बाद भी सरकारी विद्यालय मे सफाई का वही हाल है लेकिन खास बात ये की छुटियो के बाद विद्यालय जाने को मन बेहद उतावला रहता था
बरसात मे खूब नहाते थे और पढाई नहीं होने का जश्न मानते थे और भगवान् से प्राथना करते थे की रोज़ बारिश हो

मेनका said...

bachapan ki yaad taja ho gayi..aour saath hi baarish ki bhi.itna achha aour sajib likhne ke liye..hamesha likhate rahiye.

सुप्रिया said...

बेहद सरल और मासूम रचना .आप ने स्कूल के दिनों की याद को ताज़ा कर दिया . यूँ तो स्कूल के दिन जिंदगी में वापस नही आ सकते .लेकिन इस रचना को पढने के बाद कुछ पल के लिए ही सही मैंने स्कूल को अपने पास महसूस किया .बहुत बहुत शुक्रिया ..तहे दिल से आभार

Amit K Sagar said...

स्कूल की याद दिला दी आपकी नायाब रचना ने. शुक्रिया.
उल्टा तीर