Friday, 20 February 2009

रुत ए बहार


रुत ए बहार , इश्क़ बेशुमार
गुलगोशियों के आलम में
चाँद पर इश्क़ का ख़ुमार

वक्त को थाम लो
एक हसीन शाम दो
रात जब ढलने लगे
सुबह का सलाम दो

लहरों की ऊँगली थाम के
ले चल मुझे समन्दर के पार
रुत ए बहार इश्क बेशुमार

तारों को गिन ले
फलक से चुन ले
लम्हों के आलम को
यादों का नाम दो

रुत ए बहार , इश्क़ बेशुमार
गुलगोशियों के आलम में
चाँद पर इश्क़ का ख़ुमार

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