Friday, 6 February 2009

बोसा बसंत का


बोसा बसंत का
मन की उमंग का

बोसा बसंत का
दिल की उमंग का
ख्वाबों सी पतंग का

रूह को रंगे रंगरेज़
बोसा बसंत का

कुदरत परचढा
फूलों का रंग

डाल डाल फूलों की चादर
नीले आसमान के नीचे
बिछ गए फूलों के गलीचे

बोसा बसंत का

खुदा नही सकता था
हम सबके सामने
कुदरत में रंग भरे
ताकि महसूस करे
हम खुदा को
देख फूलों की चादरें

कुदरत में आई फूलों की सिलवट
महकी फिजा महकती आहट

ख्वाब जैसे नींद छोड़ के
ज़मी पर गए
खुदा तेरे रंग निराले
हम सब को भा गए

पीली पीली सरसों
रंग बिरंगे फूल
इस ज़मी पर छा गए
खुदा गुनगुनी धूप में
बैठ के हम धुनी रमायें
रंग इस फिजा का
अपनी रूह पर चढाएं

कभी खुदा फूलों की
इस चादर पर तुम भी
बैठने आओ
छिपते फिरते हो कहाँ
हमसे भी मिलते जाओ

यकीन हम सबको
एक बार ये हो जाए
होता है खुदा
फूलों सा हँसता है खुदा
हमको
महसूस हो जाए

बोसा बसंत का
दिल की उमंग का
ख्वाबों सी पतंग का
रूह को रंगे रंगरेज़
बोसा बसंत का

4 comments:

sabkiawaz said...

अनहद मस्ती. अनहद प्यार
जिंदगी ऐसे हुई गुलजार।
शुभकामना,
हिमांशु

Amit K Sagar said...

nice one

सुप्रिया said...

lovely poetry .
कभी खुदा फूलों की
इस चादर पर तुम भी
बैठने आओ
छिपते फिरते हो कहाँ
हमसे भी मिलते जाओ ।

bada hi sufi mizaz hai amitabh ji .

karmowala said...

कभी खुदा फूलों की
इस चादर पर तुम भी
बैठने आओ
छिपते फिरते हो कहाँ
हमसे भी मिलते जाओ ।
क्या खूब लिखते अमिताभ भाई मिले एक दिन जब हम उस परमात्मा से तो आपका नाम जरूर लेंगे