Monday, 21 July 2008

बरसो मेघा


बरसो मेघा
बरसो मेघा
अब तो
बरसो भी मेघा
कितने दिन बीत गए
हमने आसमान में
धनक नही देखा।

बादलों को घिरते नही देखा
बिजली की चमक
को नही देखा ।
चिडियों को फुदकते नही देखा ।

बादल आओ
बादल आओ
गाँव में हमारे
घिर के आओ
गिरते जाओ
बरसते जाओ
बादल आओ
बादल आओ

खेत प्यासे प्यास से
दाना सूखे ज़मीन में
पेड़ देखे राह तुम्हारी
कुएं देखे बाट तुम्हारी

पत्तों को ताज़ा कर दो
कुंओ में पानी भर दो
दानों को तर कर दो ।

ऊँचा ऊँचा आसमान
देखना कितना अच्छा लगता,
बिन बादल ये सूना कितना लगता
बादल बन जाए इनमे
अब दिल यही कहता ।

तुम जो घिर के बरसोगे
पानी की नदियाँ बह निकलेगी
कागज़ की कस्तियाँ चल पड़ेगी
कीचड में हम दौडेंगे
छतरी अपनी खोलेंगे

हम बच्चों को
खेल मिलेंगे
इस ज़मी पे
फूल खिलेंगे

बच्चो के हाथ उठे दुआ में
बरस भी जाओ

खेलेंगे ,भीगेंगे
संग तुम्हारे
इतना कहा
तो मान जाओ ।

(उमरानाला और आस पास के इलाके में काफी दिनों से बारिश नही हुई हैबच्चो की नमाज़ इस्ताकसा (बारिश की प्रार्थना) को खुदा सुने आमीन ! आमीन!! आमीन!!!)

3 comments:

Arvind Mishra said...

इन्द्र से गुहार तो अच्छी है देखिये कब पसीजते हैं .

सुप्रिया said...

बादल ये दुआ कबूल करे हमारी भी यही दुआ है .बेहतरीन शिल्प उम्दा खूबसूरत

मेनका said...

bahut bahut hi sundar bhaav. aapki ye duaa kabul ho..isi aasha ke saath.