Saturday, 26 July 2008

बगिया में खुशियाँ


गुमसुम सी क्यों है मुनिया
पूछे तितली पूछे बगिया
गुमसुम सी क्यों है मुनिया
गुमसुम सी क्यों है मुनिया

मुनिया मुनिया रानी
सुन भी लो हमसे एक कहानी
गिलहरी गिट पिट खट पट करती
दूब की खाट पर पेड़ों से उतरी

पानी की क्यारी में चिडियां
छप छप डुबकी मारे
मुनिया को मनाये मिलके
सारे नज़ारे

मुनिया की टोपी में
भर डाले चांदी के सिक्के
मुनिया के पास लेके आई
बगिया फूलों के गुलदस्ते.

सबकी धींगा मस्ती से
उदासी हुयी फुर्र फुर
सर सर कर हवा लहरायी
तितलियों ने फ़िर दौड़ लगायी

मुनिया भागी उनके पीछे
ऊपर नीचे आगे पीछे

मुनिया क्या मुस्कायी
बगिया में खुशियाँ छायी

5 comments:

Arvind Mishra said...

तितलियाँ -बचपन कौंध गया

Unknown said...

wah due ji pari tumhe tau ki pehle kavita mubarak ho!!

नीरज गोस्वामी said...

Waah....Munia ke saath Mishti yaad aa gayii...bahut pyari rachna hai aap ki
.
Neeraj

सुप्रिया said...

सर सर कर हवा लहरायी
तितलियों ने फ़िर दौड़ लगायी
अमिताभ जी ,
आपकी रचनाओं में जो सहजता होती है .वो वाकई बेमिसाल है . बगीचे में लगा मैं भी मुनिया को मना रही हूँ . आपकी ये सुंदर सी बगिया कल मेरे ख्वाब में भी आई . बहुत ही सुंदर सरल और सुन्दरतम !!
हमें फ़िर से बच्चा बनने के लिए
दिल से आभार

मेनका said...

aapki har kavita sundar hai. kavita me nirmal bachpan ka bhaav bahut achha lagta hai.aise hi likhte rahiye.