Sunday, 5 October 2008

मुझे अब भी याद है


मुझे अब भी याद हैं
आज भी याद है
मासूम से रिश्ते के
वो सिलसिले
चाँद में नहाये हुए
चांदनी में धुले हुए

भूलने की तुम्हे कोई वजह
आज तक समझ आती नही ।
बचपन की वफ़ा का असर
अब तक है कैसे ?

मुझे अब भी यकी नही
कि एक अरसे से हम दोनों
के दरमियाँ कोई बातचीत भी नही

गाँव की गलियां उनमे
तुम्हारे घर का झरोखा
उस झरोखे से तुम्हरा
झांकता चेहरा ...

अब भी दिख जाता है
कभी ख्वाब में कभी
हकीकत में

तुमको ख्वाब समझ कर
भूल जाने की कोशिश भी की
ख्वाब होती तो
शायद याद भी न रहती

कुछ किताबों के पन्नो सी
यादे
यादों की अच्छी
सौगातें !!

चाँद को देखने से तुम
याद आ जाते हो
ब्लैक बोर्ड पर लिखी
होती गर ये मासूम
मुहब्बत
मैं मिटा तो देता
मगर फिर भी ये
कर पाना मुश्किल ही होता ।

मेरी तुम्हारी यादों के पल
गुल्लक में भरे हैं
खनकते
आ ही जाते हैं।

आज चाँद से पूछ कर
देखूंगा
कितना करती हो
तुम मुझको याद

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