Wednesday, 27 August 2008

खुदा का इंतजार


प्यारे खुदा ,

कभी धूप तेरा इंतज़ार करती है

कभी छांव को इंतजार होता है

तेरी आमद का इंतजार

एक मुझे ही नही सबको होता है

जो उड़ जाता धुँआ बनके

कोई ख्वाब होता

जो मिल जाती सोहबत तेरी

इश्क रूहे एहसास होता है

मैं देखता हूँ ख्वाबों में

अक्सर ये मंज़र साहिल के किनारे

खुदा तुम और ये बंदा परवर

कभी दरिया की गीली रेत लगते हो

गीली रेत पर बने महल भी लगते हो

प्यारे खुदा मासूम से घरोंदे में रहते हो

इन घरोंदों में रात बीते इन्जार होता है

मेरी दुनिया को रोशनी दे दी

प्यारे खुदा !

तुम सचमुच बहुत प्यारे हो !!

तुम्हारे साथ बीते हर लम्हा

बस यही इंतज़ार होता है