होली जा चुकी है
याद आते है बचपन मे
स्कूल की क़मीज़ पे
स्याही के नीले काले दाग़
वो साथियों के बीच
होली शुरू होने से पहले
स्कूल मे होली खेलना
दवात से कमीज़ पे छीटे
उडाना
ब्लैक बोर्ड के काले कोयले
के लेप को चेहरे पे मलना
वो बचपन की क्लास की होली
कमीज़ पे नीली काली स्याही के धब्बे
वो कलम (पेन) को पिचकारी बना लेना
स्याही के धब्बे से घर पे मम्मी की
डांट और डपट
क्लास मे टीचर की बैंत
कमीज़ पे धब्बे काश !!
कोई फ़िर से बना के
होली का रंग भर दे !!
2 comments:
very good blog, congratulations
regard from Catalonia Spain
thank you
विद्यालय की वो शरारत भरी जिंदा जिन्दगी की अब बहुत याद आती जब अपने छोटे छोटे बच्चे कमर पर लाद कर भारी बस्ता लेकर आते जाते है उन मैं वो मस्ती अब न जाने क्यों गुम से लगती है आपकी रचना इस उदेश्य से उन बच्चो को बचपन की शरारत को जीने की उम्मीद जगाये तो मजा आ जायेगा
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