Monday, 24 March 2008

क़मीज़ पे दाग़

होली जा चुकी है
याद आते है बचपन मे
स्कूल की क़मीज़ पे
स्याही के नीले काले दाग़

वो साथियों के बीच
होली शुरू होने से पहले
स्कूल मे होली खेलना
दवात से कमीज़ पे छीटे
उडाना

ब्लैक बोर्ड के काले कोयले
के लेप को चेहरे पे मलना
वो बचपन की क्लास की होली
कमीज़ पे नीली काली स्याही के धब्बे

वो कलम (पेन) को पिचकारी बना लेना
स्याही के धब्बे से घर पे मम्मी की
डांट और डपट
क्लास मे टीचर की बैंत
कमीज़ पे धब्बे काश !!
कोई फ़िर से बना के
होली का रंग भर दे !!

2 comments:

Jobove - Reus said...

very good blog, congratulations
regard from Catalonia Spain
thank you

karmowala said...

विद्यालय की वो शरारत भरी जिंदा जिन्दगी की अब बहुत याद आती जब अपने छोटे छोटे बच्चे कमर पर लाद कर भारी बस्ता लेकर आते जाते है उन मैं वो मस्ती अब न जाने क्यों गुम से लगती है आपकी रचना इस उदेश्य से उन बच्चो को बचपन की शरारत को जीने की उम्मीद जगाये तो मजा आ जायेगा