Wednesday, 5 November 2008

सारा जहाँ सिमट गया

आज फिर ये एहसास हुआ
खुदा जैसे तुमने मुझे छुआ
तुम्हारी छुअन से
जो जुम्बिश हुई
ये जुम्बिश अभी तक कायम है
ऐसा लगा मझको
हम दो नही एक है
खुदा वो जो तुम सिमट गए थे
मेरी बाँहों में आके
खुदा मुझे ऐसा लगा
सारा जहाँ मुझमे सिमट गया
खुदा तुम्हारी करवट मुझे
मोम की मानिंद लगी
ऐसा कभी कभी ही क्यूँ होता है ?
खुदा ये रोज़ क्यों नही होता
खुदा तुम कुछ तरकीब लड़ाओ
मेरी बाँहों में
हमेशा के लिए आ जाओ.

1 comment:

अमिताभ भूषण"अनहद" said...

खुदा तुम कुछ तरकीब लड़ाओ
मेरी बाँहों में
हमेशा के लिए आ जाओ
क्या बात है ,कमाल है आप की मुराद ..आमीन