Monday, 17 November 2008

मेरा रुक जाना


किसी चीज़ का गुम हो जाना
जैसे दिल का ही खो जाना

रुक जाना वक्त का
सूरज का जैसे छिप जाना

ये तन्हाई का आलम और तेरे इश्क का तस्करा *
दिल बहलाने के लिए फ़िर यारों का मशवरा

यूँ तो यारो की सोहबत अच्छी लगती है
दौर ऐ मुहब्बत में ये चुभती है

किताबों में पढ़ ले कोई हर्फ़ हर्फ़
आरजू का कुछ ऐसे बयां हो जाना

सितारों के आगे जहाँ का चले जाना
ऎसी रफ्तार में तेरे वास्ते मेरा रुक जाना

न शर्म की न ही रखा हया ऐ ख्याल
किसी बात पर चेहरे से उसके रंग उड़ जाना

जो सीख ले तुझ से दिल लगाना
उसका तेरी गलियों से फ़िर कहीं न जाना

*तस्करा :चर्चा

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