Friday, 5 December 2008

ज़रा सोचना


ज़रा एक बार
ये भी सोचना
ज़रा एक बार
ये ख़ुद से भी पूछना
ख़ुद से आँख भी मिलाना
ज़रा ये बात ख़ुद को
भी बताना

क्या हम भी नही हैं दोषी
इन धमाकों के ?
क्या ये वो हम ही नही
जो बिना पड़ताल के
रख लेते हैं अपने घरों में
किरायदार

क्या ये वो हम ही नही हैं
जो दे देते है अपने माहौल में
दहशतगर्दो को पनाह

क्या ये वो हम ही नही हैं
जो हमेशा अपनी निगाहें
फेर कर रखते हैं
अपने आस पास के माहौल से
हमारे बीच में
दहशत
गर्द जाते है ?
और हम समझ भी नही पाते है!

क्या हमारी निगाहों ने
कभी किसी पर शक किया है .
ज़रा एक बार
ये ख़ुद से भी पूछना
ज़रा एक बार
ये भी सोचना

क्या ये वो हम ही नही
जो चुन लेते हैं
भ्रष्ट और निक्कमे नुमाइंदे

आख़िर कब तक हम भी
अपनी ज़िम्मेदारी से मुहं मोडेंगे ?
हमें चौकन्ना बनना होगा
हमें सजग रहना होगा

अपने आस पास के माहौल
पर नज़र रखनी होगी
कोई दहशत गर्द हमारे
बीच में फ़िर आए
कोई भ्रष्ट निकम्मा नुमाइंदा
हमारे वोट से संसद में जाए

रहना होगा होशियार
हम सबको बनाना होगा जिम्मेदार
अपने देश का सजग पहरेदार

(चित्र :बीबीसीहिन्दी डॉट कॉम )

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया व सामयिक रचना है।बधाई।