सर्द कोहरे की रात
कोहसारे पेड़ जैसे सब
छिप से गए
छिप गया चाँद भी
और आसमान के तारे भी
कोई शीशे से ख्वाब
फ़िर सैर पर निकले
आँखों से झलकते
झिलमिलाते तारों की तरह
उस कोहरे में खुली
आँखों से कुछ भी दिखाई
नही देता था
सर्द हवा बहने लगी
और ख्वाब
वो तो मुलायम रेशम की
मानिंद मेरे साथ बहते रहे
जो खुली आँखों से दिखाई
नही दिया कोहरे में
वो एक एक कर दिखने
लगा बंद आँखों में
आँखों से जैसे परदे उठने लगा
कल रात .....
ख्वाब में ....
खुदा ही था शायद मेरे!!!
कोहसारे पेड़ जैसे सब
छिप से गए
छिप गया चाँद भी
और आसमान के तारे भी
कोई शीशे से ख्वाब
फ़िर सैर पर निकले
आँखों से झलकते
झिलमिलाते तारों की तरह
उस कोहरे में खुली
आँखों से कुछ भी दिखाई
नही देता था
सर्द हवा बहने लगी
और ख्वाब
वो तो मुलायम रेशम की
मानिंद मेरे साथ बहते रहे
जो खुली आँखों से दिखाई
नही दिया कोहरे में
वो एक एक कर दिखने
लगा बंद आँखों में
आँखों से जैसे परदे उठने लगा
कल रात .....
ख्वाब में ....
खुदा ही था शायद मेरे!!!
2 comments:
bahut sundar एहसास ।
बहुत बढिया रचना है।बधाई।
जो खुली आँखों से दिखाई
नही दिया कोहरे में
वो एक एक कर दिखने
लगा बंद आँखों में
बहुत ही उम्दा भाई.
लव यू.
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