Monday, 8 December 2008

कल रात ख्वाब में


सर्द कोहरे की रात
कोहसारे पेड़ जैसे सब
छिप से गए
छिप गया चाँद भी
और आसमान के तारे भी

कोई शीशे से ख्वाब
फ़िर सैर पर निकले
आँखों से झलकते
झिलमिलाते तारों की तरह

उस कोहरे में खुली
आँखों से कुछ भी दिखाई
नही देता था
सर्द हवा बहने लगी

और ख्वाब
वो तो मुलायम रेशम की
मानिंद मेरे साथ बहते रहे

जो खुली आँखों से दिखाई
नही दिया कोहरे में
वो एक एक कर दिखने
लगा बंद आँखों में
आँखों से जैसे परदे उठने लगा
कल रात .....
ख्वाब में ....
खुदा
ही था शायद मेरे!!!

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

bahut sundar एहसास ।
बहुत बढिया रचना है।बधाई।

जो खुली आँखों से दिखाई
नही दिया कोहरे में
वो एक एक कर दिखने
लगा बंद आँखों में

Amit K Sagar said...

बहुत ही उम्दा भाई.
लव यू.