Saturday, 27 December 2008

ख़ुद को ख़ुदा सोच के देखा


सितारों की चादर पर पैरों को पसार के देखा
शब का नूर उसकी आँखों में देखा

वो गुमशुदा सी रातें कल की बात थी
आज रात भी देखी ,सुबह को भी देखा

उसका नज़र आ जाना ही काफी है
उसके बारे में ही बस सोच के देखा

आज जब इनायत हो ही गई है तो ,
कुछ देर ख़ुद को ख़ुदा सोचके देखा

4 comments:

"अर्श" said...

बहोत खूब लिखा है आपने .....

Amit K Sagar said...

ख़ुद को खुदा सोच के देखा
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ये ख्याल ही अपने अपने आप में बहुत बड़ी बात है
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उम्दा
luv u brother
amit k sagar

KK Yadav said...

आपके ब्लॉग पर बड़ी खूबसूरती से विचार व्यक्त किये गए हैं, पढ़कर आनंद का अनुभव हुआ. कभी मेरे शब्द-सृजन (www.kkyadav.blogspot.com)पर भी झाँकें !!

karmowala said...

नववर्ष की बधाई का ये नया अंदाज़ बहुत ही उम्दा लगा इस आपका संदेश सपष्ट रूप से मन पर अंकित होता है की पहचान कर अपनी शक्ति हर एक इंसान तोक्या नही होता आज भी जमी पर रोज़ एक ही सूरज है निकलता
धन्यवाद
सप्रेम