Friday, 26 December 2008

चाँद उदास है


सर्द रातों में कोहरे का राज़ है
नीली रातो का चाँद थोड़ा उदास है

कोहरे की चादर में उसे
ज़मी नही दिखती
ज़मी को देखे बिना
उसकी सांसे नही चलती

चाँद ....
कुछ उदास है
सर्द रातों में कोहरे का
राज़ है ।

सर्द राते ...
चाँद को भी लगती सर्दी
चाँद ने ओढ़ लिया
बादलों का लिहाफ

सर्दी ....
फ़िर भी जाती नही
चाँद के पास रातो में
सूरज धर दो

हथेली ....
रगड़ दो चाँद की
थोडी गर्मी जाए
नर्म गुलाबी धूप
में बैठालो चाँद को भी
अपने पास

ये राज़ ही है
चाँद कभी सोता नही
इस बात के लिए
कभी चाँद रोता भी नही

ज़मी ...
कुछ देर तू ही ज़रा
पिघल जा
चाँद के लिए
कोहरों से बाहर तू ही
निकल जा

चाँद
तन्हा रातो में घूमे है
तेरी दीद को तरसे है

3 comments:

Vinay said...

बहुत संवेदनशील रचना है

---
चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/

रंजू भाटिया said...

चाँद ....
कुछ उदास है
सर्द रातों में कोहरे का
राज़ है ।

बहुत खूब लिखा आपने

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

हथेली ....
रगड़ दो चाँद की
थोडी गर्मी आ जाए
नर्म गुलाबी धूप
में बैठालो चाँद को भी
अपने पास

chaand ko aise kabhi nahin soncha tha maine..aapne to use dhoop mein baitha diya..bahut achhe..