Friday, 29 February 2008

एक वादा

एक वादा चांद करता है
चांदनी से रोज़ रात
चुपके चुपके
चांदनी भी अलसाई अंगडाई लेकर
मान लेती है वो वादा
चुपके चुपके
आगोश मे जब भरता है चांद
वो यद् दिला देती है वादा
चुपके चुपके
आस्मान नज़ारा करता है
हर रात चांद के मिलन का
चांद को लगता है
उसे कोई देखता है
चुपके चुपके

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