Tuesday, 5 February 2008

मखमल

मखमल का गलीचा बिछाने की
आरजू थी
सपने दिखाता और देखता था मैं
तुम भी नादाँ बनके कभी भी
मुझे सच से रूबरू नही होने देती थी

No comments: