Thursday 28 February, 2008

पुराने पन्नों से

खूबसूरत सफर है चलते रहिये
जितना भी कटे काट लीजिये

परेशानी का सबब जानकर होगा क्या
ज़िंदगी को मदहोशी से भी पी लीजिये

कोई तारों को टकटकी लगाये उम्र खपाता है
कोई तारों की खयाली मे सुकून पता है

परवरदिगार तेरे राज़ अजीब हैं
ऐसे मे ये नाचीज़ क्या चीज़ है

उसे क्या हुआ मालूम नही
सुना है उसे भी मालूम नही है

फुरसत मे मिलने की बात करता है
पर कभी फुरसत मे नही मिलता है

शबे नूर पर चांद ही एक हूर है
तारें कई पर सब के सब इससे दूर हैं

होश रहा किसे कितना
कई बार ये सवाल ख़ुद से भी पूछना

पुराने पन्नों से निकल कर आई है ये बात
मिजाज़ मे कुछ नया नही
पर बात तो नयी ज़रूर है !!

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